Class 12th आरोह ( बगुलों के पंख ) Easy explained

Class 12th आरोह ( बगुलों के पंख ) Easy explained

परिचय

यह कविता प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्बंधित है |
आकाश में काले-काले बादल छाए हुए हैं |
साँझ का समय है, सफ़ेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर आकाश में जा रहे हैं | 

सन्दर्भ

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘बगुलों के पंख’ से लिया गया है |

प्रसंग

नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।

व्याख्या

इस काव्यांश में संध्याकालीन आकाश में पंक्तिबद्ध उड़ते बगुलों के श्वेत पंखों के सौन्दर्य तथा संध्याकालीन आकाश में प्राकृतिक दृश्य का सुन्दर वर्णन किया गया है | 
कवि कहता है – आकाश में बगुले अपने पंख फैलाए हुए कतार में उड़ रहे हैं | उमे इतना आकर्षण है की वे मेरी आँखों को चुराकर ले जा रहे है |
आकाश में काले-काले बादल छाए हुए हैं | उसे देखकर ऐसा लगता है मानो साँझ की श्वेत कांतिमय काया विहार कर रही हो | 
यह साँझ धीरे-धीरे आकाश में विहार कर रही है और मुझे अपने जादू में बाँध रही है | कवि को डर है की ये रमणीय दृश्य कहीं ओझल न हो जाए |
इसलिए वह गुहार लगाकर कहता है – कोई तो उसे ज़रा-सा रोककर रखो | मैं इस दृश्य को और देर तक देखते रहना चाहता हूँ |
इस सुन्दर वातावरण के बीच पंख फैलाकर उड़ते बगुलों की पंक्तियाँ मेरी आँखें ही चुरा लेंगी |
इन्हें रोको | मैं इनके सौन्दर्य में डूबा जा रहा हूँ |

विशेष

कविता की भाषा सरल तथा सहज है |
इसमें प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया गया है |
‘हौले-हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है |
‘आँखे चुराना’ मुहावरे का सुन्दर प्रयोग हुआ है |
छोटे-छोटे शब्दों के प्रयोग से भाषा में एक नया सौन्दर्य आ गया है | 

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