बात सीधी थी पर ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th Baat Sidhi thi par - Easy Explained
सन्दर्भ
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई है | कवि कुँवर नारायण की यह कविता उनके ‘कोई दूसरा नहीं’ नामक काव्य संग्रह से ली गई है |
प्रसंग :-
इस पद्यांश में बताया गया है की सहज बात को सरल शब्दों में कह देने से बात अधिक प्रभावी तरीके से संप्रेषित होती है |
अधिक जटिलता अर्थ की अभिव्यक्ति में बाधा ही डालते हैं |
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
व्याख्या
कवि कहता है की मेरे मन में एक सीधी सरल सी बात थी जिसे मैं कहना चाहता था |
परन्तु मैने सोचा कि इसके लिए बढ़िया सी भाषा का प्रयोग करूँ जैसे ही मैने भाषाई प्रभाव जमाने का सोचा बात की सरलता खो गई |
अर्थात भाषा के जाल में फंसती गई और पेचीदा हो गई |
प्रायः ऐसा होता है की हम कुछ कहने के लिए जब घुमावदार भाषा का सहारा लेते हैं, तो बात अधीक उलझ जाती है |
तात्पर्य यह है की कविता की रचना प्रक्रिया में भावों के अनुसार भाषा का चुनाव करना चाहिए |
यदि भाषा के साथ तरोड़ मरोड़ करने की कोशिश की गई, तो भावों की अभिव्यक्ति सही तरीके से नहीं हो पाएगी |
प्रसंग :-
इस पद्यांश में कवि ने भाषा की सहजता पर जोर दिया है -
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
व्याख्या
पेंच खोलने का अर्थ है अभिव्यक्ति के उलझाव को सुलझाने में मदद करना या बात को सरल ढंग से अभिव्यक्त करने का प्रयास करना |
जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे तो उसे खोलकर फिर से लगाने की बजाए उसे कोई जबरदस्ती कसता चला जाए उसी प्रकार कवि बात को उलझाता चला गया |
कवि हड़बड़ी में बिना सोचे समझे अभिव्यक्ति की जटिलता को बढ़ाता जा रहा था वह तमाशबीनों की वाहवाही के चक्कर में मूल समस्या को समझने पर ध्यान नहीं दे पा रहा था |
अभिव्यक्ति को बिना सोचे समझे उलझाने को कवि ने करतब कहा है |
इस पद्यांश का मुख्य उद्देश्य यह है की कवि और रचनाकार को धैर्यपूर्वक अभिव्यक्ति की सरलता की ओर बढ़ना चाहिए बिना सोचे समझे किसी बात को उलझाना गलत है |
प्रसंग :-
कवि इस पद्यांश में सटीक अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा के चुनाव पर बल देता है |
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
'क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?"
व्याख्या
भाषा के साथ जबरदस्ती करने का वही परिणाम हुआ जिसका कवि को डर था | भाषा की तोड़ने मरोड़ने से उसका मूलभाव ही नष्ट हो गया |
बात की चूड़ी मरने का अर्थ है बात का प्रभावहीन हो जाना
बात को कील की तरह ठोकने का आशय है – भाषा के साथ जबरदस्ती करना, सीधी और सरल बात को बड़े बड़े शब्दों में उलझाना |
तभी बात ने, जो कवि के साथ शरारती बच्चे की तरह खेल रही थी, परेशान हो चुके कवि को पसीना पोंछते देख कर भाषा की सहूलियत अर्थात भाषा का उचित और सरल प्रयोग करने के बारे में चेताया |
वास्तव में, यहाँ कविता के लिए सहज और सरल भाषा के चुनाव का आग्रह कवि द्वारा किया गया है |
भाषा को सहूलियत से बरतने का अर्थ है – भाव के अनुसार भाषा को चुनना और उसका प्रयोग करना |
क्योंकि भाषा केवल एक माध्यम है | वास्तविक उद्देश्य है – भावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति |
विशेष :-
कविता की भाषा सरल साहित्यिक खड़ी बोली है |
भाषा सहज होते हुए भी बिम्ब प्रधान है |
भाषा में तत्सम तथा उर्दू शब्दों के मेल से विशेष प्रभाव आया है |
कवि ने अलंकारों का काफी सुन्दर प्रयोग किया है |
‘पसीना पोंछना’ परेशानी के अर्थ को सूचित करने वाला मुहावरेदार प्रयोग है |
‘कील की तरह ठोकना’ में उपमा अलंकार है |
कवि ने काव्यांश में बात का ‘मानवीकरण’ किया है |
तमाशबीन और करतब शब्दों में व्यंग्य का भाव छिपा है |