औद्योगिक विकास की रणनीति ( 1947- 1990 )- Class 12th Indian economy development Chapter - 4th ( 2nd Book ) Notes in hindi
उद्योग का महत्व
किसी देश की समृद्धि एवं विकास के लिए उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
1] रोजगार का स्रोत
रोजगार एक महत्वपूर्ण स्रोत है यह तब महत्वपूर्ण होता है जब कृषि पर पहले से ही अधिक भार होता है श्रम बल तेजी से बढ़ता है
इस श्रम बल को लाभकारी रोजगार केवल कृषि से बाहर ही मिल सकता है इसी समय उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
2] खेती के यंत्रीकृत साधनों का स्रोत
खेती के यंत्रीकरण में उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है खेती में मशीनों जैसे
1] ट्रैक्टर
2] थ्रेसर
का प्रयोग केवल उद्योगों के विकास एवं समृद्धि के कारण संभव हुआ है
खेती में यंत्रीकरण के कारण ही भारत (विश्व में दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश के लिए) पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादित करने में सफल हुआ है
3] आधारिक संरचना का विकास
औद्योगिकीकरणके कारण अर्थव्यवस्था में आधारिक संरचना का विकास होता है
देश के अलग-अलग भागों में उद्योग का विस्तार होता है उद्योग का विस्तार होने से यातायात एवं संचार के साधनों बैंकिंग बीमा सेवा आदि के रूप में आधारिक संरचना सुविधाओं का विस्तार होता है
सन 1956 की औद्योगिक नीति राज्य की प्रमुख भूमिका का घोषणा पत्र
सन 1956 की औद्योगिक नीति द्वारा इस बात की घोषणा की गई थी कि औद्योगीकरण की प्रक्रिया में सरकार की भूमिका प्रमुख होगी
1] औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएं
1] औद्योगिक लाइसेंसिंग
निजी क्षेत्र में उद्योग को स्थापित करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना आवश्यक बना दिया
लाइसेंसिंग नीति के पीछे मूल विचार देश के पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करना था
ऐसा इसलिए किया गया ताकि क्षेत्रीय समानता को प्रोत्साहित किया जाए
एक नए उद्यम को स्थापित करने के लिए लाइसेंस लेना जरूरी था
चालू उद्यमों को अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करने के लिए भी सरकार से लाइसेंस लेना जरूरी था
2] औद्योगिक रियायतें
देश के पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना हेतु निजी उद्यमों को कई प्रकार की छूट प्रदान की गई
इन रियायतो में शामिल थे
1] कर अवकाश - कुछ समय के लिए कर के भुगतान से मुक्ति
2] रियायती दरों पर बिजली की आपूर्ति
औद्योगिक रियायतों का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को प्रोत्साहित करना था
छोटे पैमाने के उद्योग का विकास
1] आधारिक संरचना की सुविधा को बनाने के लिए बड़े पैमाने के उद्योग का (विकास)
2] सामाजिक न्याय के साथ-साथ रोजगार के अवसरों के लिए छोटे पैमाने के उद्योग का विकास
सन 1950 नियोजन के आरंभ में इस उद्योग को छोटे पैमाने का उद्योग कहा जाता है जिसमें ₹ 5 रूपये से अधिक का निवेश नहीं किया जाता
1950 - 1990 की अवधि के दौरान औद्योगिक विकास की रणनीति की प्रमुख विशेषताएं
अच्छे और बुरे प्रभाव
विशेषता
1] औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया में सार्वजनिक उद्यमों की भूमिका ज्यादा थी
2] औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया में निजी उद्यमों का केवल द्वितीयक भूमिका थी वह भी परमिट लाइसेंस राज के अंतर्गत
3] औद्योगिकरण की प्रक्रिया आयात प्रतिस्थापन पर केंद्रित थी
4] इसका अर्थ है ऐसी वस्तुओं के उत्पादन को उच्च प्राथमिकता दी जाती थी जो शेष विश्व से आयात की जाती थी इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता बनना था
5] देश में आधारिक संरचना के धार का निर्माण करने के लिए बड़े पैमाने के उद्योग का विकास किया जाना था
6] रोजगार तथा साम्या के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु छोटे पैमाने के उद्योग का विकास किया जाना था
अच्छे प्रभाव
1] आर्थिक विकास को बड़ा धक्का प्राप्त हुआ 1950 - 1990 की अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादन में लगभग 6% प्रति वर्ष की महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है
2] बड़े पैमाने के उद्योग के विकास से भारतीय अर्थव्यवस्था को धारित संरचनात्मक को मजबूती प्राप्त हुई
3] सामाजिक न्याय के साथ विकास के उद्देश्य की प्राप्ति में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास का ठोस योगदान रहा
बुरे प्रभाव
1] घरेलू उद्योग के संरक्षण के फल स्वरुप घरेलू उद्योग के विकास को प्रोत्साहित प्राप्त हुआ किंतु यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता प्राप्त करने में विफल रही
2] आयात प्रतिस्थापन द्वारा विदेशी विनिमय की बचत करना सरकार का एक कुशल नीतिगत उपकरण सिद्ध हुआ
हमारे विदेशी विनिमय के भंडार कम होने लगे
सन 1990 के अंत तक यह भंडार अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच गए
हमें विदेशों से ऋण लेने के लिए विश्व बैंक के पास अपने सोने के भंडारों को गिरवी रखना पड़ा